भगवान के बनाए हुए सृष्टि में सभी “व्यवस्था” चाहे वह रहने के लिए,खाने के लिए या किसी और चीज के लिए हो, सभी के लिए एक पारिस्थितिकीतंत्र है। जिस प्रकार मनुष्य किसी दूसरे जीवो के बनाए आवास में नहीं रह सकता है, उनके तरह भोजन नहीं कर सकता है क्योंकि मनुष्य का इकोसिस्टम अन्यजीव से अलग है। फिर भोजन के लिए निर्दोषजीवो को आहार बनाना क्या उचित है पोषक तत्व के नाम पर, ‘बिल्कुल नहीं’ आई समझते हैं।
हमारे यहां ५६ भोग तक के व्यंजन बनाए जा सकते हैं जो शद्ध सात्विक,शाकाहारी एवं पोस्टिक होता है, फिर निर्दोषजीव को आहार क्यों बनाना।
हमारा पाचनतंत्र शाकाहारी चीजों को आहार के रूप में लेने के लिए बना है, जब हम किसी निर्दोष जीव को आहार के रूप में लेते हैं तो वस्तव में हम किसी थोड़े देर पहले मृत जीव को आहार के रूप में ले रहे होते हैं, जो कि हमारे पाचनतंत्र के अनुकूल नहीं है ।
जितने भी तरह के पोषक तत्व हमारे शरीर को विकसित करने के लिए चाहिए वह सभी पोषक तत्व शाकाहारी एवं सात्विक आहार में प्रचुर मात्रा में विद्यमान है, उदाहरण के लिए भारतीय गाय के दूध में प्रोटीन एवं कैल्शियम की मात्रा अंडा से कई गुना ज्यादा होता है, हरि साग सब्जी में पोषक तत्व की मात्रा किसी भी अन्य की तुलना में कई गुना ज्यादा होता है, फिर निर्दोष जीव को आहार क्यों बनाना।
भारतीय गाय के घी में गुडकोलेस्ट्रॉल होता है जो हमारे शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी है तो फिर सिर्फ चर्बी के लिए निर्दोषजीव को आहार क्यों बनाना,जो हमारे शरीर पर कहीं ना कहीं दुष्प्रभाव छोड़ता है।
आध्यात्मिक नियमों अनुसार हम आहार के रूप में केवल उन्हीं वस्तुओं को ले सकते है जो विरोध ना करें, जब हम शाकाहारी चीजों को आहार के रूप में लेते हैं तो वह कभी भी चीखना चिल्लाना या किसी भी प्रकार का विरोधाभास प्रकट करना ऐसा नहीं होता है। इसके ठीक विपरीत जब हम किसी निर्दोषजीव को आहार के रूप में लेने की प्रयास करते हैं तो वह अपनी जान बचाने के लिए हर संभव प्रयत्न करता है। फिर निर्दोष जीव का आहार क्यों बनना।
अतः भगवान के बनाए गए पारिस्थितिकीतंत्र के हिसाब से आहार लेना चाहिए, निर्दोषजीव को आहार के रूप में कभी नहीं लेना चाहिए, हर जीव जंतु को उनके हिसाब से जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ।सात्विक एवं शकाहारी आहार ही उत्तम व्यवहार है। पोस्ट को ज्यादा ज्यादा शेयर करे धन्यवाद।
वंदे गो मात्रम, जय श्री राम, राधे-राधे, भारतमाता की जय।