चरक ऋषि के अनुसार दही पवित्र एवं पौष्टिक है इसलिए किसी भी शुभकार्य करने से पहले दही को उपयोग में लिया जाता है। इसलिए दही को मंगलकारी भी कहा जाता हैं। इसके कुछ आध्यात्मिक एवं तार्किक तथ्य को जानते हैं।
चरक ऋषि के अनुसार दही को ‘रोचनम्’ बताया गया है, अर्थात खाने में यह रुचिकर है।
दही ‘दीपनीय और अग्निवर्धक’ है अर्थात यह पाचन क्षमता को बढ़ाता है।
दही “स्नेहनम्” अर्थात यह शरीर को स्निग्धता प्रदान करता है, परिणामस्वरूप वात नाशक, अर्थात वात दोष को नाश करता है।
दही बाल वर्धन है अर्थात यह शरीर में बाल की वृद्धि करता है।
दही को दस्त, विषम ज्वर ,भोजन में अरुचि को दूर करने वाला, मूत्र अवरोध दूर करने वाला भी कहा गया है।
दही वीर्य वर्धक है।
ऊपर बताए हुए गुण गोमाता के दूध से जमाये गए दही को वर्णित करते हैं जिससे यह सत्यापित है की गोमाता का दही सर्वश्रेष्ठ है।
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भैंस का दूध पचाने में भारी होता है इसमें आवश्यकता से अधिक स्निग्धता होती है जिससे शरीर में ब्लॉकेज होने की संभावना और रक्त दूषित होने की संभावना उत्पन्न होती है।
आयुर्वेद के अनुसार अधिकतर चर्म रोग दही नियमानुसार सेवन न करने के कारण होता है।
दही दिन के समय में खाना चाहिए, रात के समय नहीं खाना चाहिए।
दही को कभी अकेला नहीं खाना चाहिए उसमें घी, मिश्री, शहद खांड इत्यादि मिलाकर ही खाना चाहिए।
छाछ स्वादिष्ट पाचन वर्धक टॉनिक है समझते हैं कैसे।
छाछ पचाने में लघु(हल्की) कषाय,पाचन शक्ति को बढ़ाने वाली, कफ नाशक, भोजन में रुचि बढ़ाने वाली हैं।
भावप्रकाश अनुसार शीतकाल में अग्नि की मंदता में, वात रोग में, नाड़ियों के अवरोध में, छाछ अमृत के समान गुणकारी है।
छाछ गोमाता के दूध से बने हुए दही से बनना चाहिए ।छाछ आहार का पाचन करती है, दही और छाछ को मिट्टी के पात्र में रखना चहिए।
छाछ के सेवन से दस्त,क्षय, पेट का रोग, कुष्ठ जैसे विविध रोग दूर होते हैं।
कब्ज होने पर छाछ में अजवाइन और सेंधा नमक डालकर पीना चाहिए।
इस प्रकार गोमाता के दूध से बने हुए दही एवं दही से बना हुआ छाछ हमारे शरीर के लिए अत्यंत गुणकारी है ।इसलिए गोमाता का स्वाभिमान के साथ सेवा करें, पोस्ट को ज्यादा ज्यादा शेयर करें।
वंदे गो मात्ररम ,जय श्री राम, राधे राधे-राधे, भारत माता की जय।
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